B.Sc 1 year Microbiology Paper 1 - General Microbiology and Cell Structure Unit 1
Unit 1
Topic 1 - Indian Traditional Knowledge and Global Historical Background of Microbiology and Topic 4 - Contribution of scientists in the field of Microbiology
टॉपिक 1 - माइक्रोबायोलॉजी (सूक्ष्मजीव विज्ञान) का भारतीय पारंपरिक ज्ञान और वैश्विक ऐतिहासिक पृष्ठभूमि तथा टॉपिक 4 - माइक्रोबायोलॉजी के क्षेत्र में वैज्ञानिकों का योगदान
इस आर्टिकल में आपको B.Sc माइक्रोबायोलॉजी 1 Year के Paper 1 के 1 & 4 टॉपिक के नोट्स दिए गए हैं। हमने कुछ प्रश्न भी दिए हैं जिनके आधार पर परीक्षा में आपसे प्रश्न पूछे जाते हैं। इससे आप लोगो को यह आइडिया लगाने में मदद मिलेगी की परीक्षा में प्रश्न किस प्रकार आ सकते हैं।
प्रश्न 1 - माइक्रोबायोलॉजी पर संक्षिप्त नोट लिखिए।
प्रश्न 2 - माइक्रोऑर्गेनिज्म (सूक्ष्मजीवों) के बारे में बताएं।
प्रश्न 3 - माइक्रोबायोलॉजी के इतिहास के बारे में बताइए।
प्रश्न 4 - माइक्रोबायोलॉजी के क्षेत्र में योगदान करने वाले विभिन्न वैज्ञानिकों के बारे में लिखिए।
प्रश्न 5 - लुईस पाश्चर, एंटनी वान लीउवेनहॉक और एडवर्ड जेनर पर नोट लिखिए।
क्योंकि हम माइक्रोबायोलॉजी (सूक्ष्मजीव विज्ञान)की पहली unit के बारे में अध्ययन कर रहे हैं तो सबसे पहले माइक्रोबायोलॉजी और माइक्रोऑर्गेनिज्म को समझना आवश्यक है। तो आइए पहले इन परिभाषाओ को समझे -
माइक्रोबायोलॉजी
माइक्रोबायोलॉजी विज्ञान की एक शाखा है जिसमें सूक्ष्मजीवों का तथा सूक्ष्मजीव और पर्यावरण एक-दूसरे को किस प्रकार प्रभावित करते हैं यह अध्ययन किया जाता है। एंटनी वान लीउवेनहॉक को माइक्रोबायोलॉजी का जनक कहा जाता है। लुईस पाश्चर को आधुनिक माइक्रोबायोलॉजी का जनक माना जाता है। सूक्ष्मजीवों का आकार इतना छोटा होता है कि हम उन्हें देख नहीं पाते हैं केवल स्टेनिंग करके माइक्रोस्कोप के माध्यम से देखा जा सकता है। जिस प्रकार हम पृथ्वी पर सभी जगह मौजुद हैं उसी प्रकार सूक्ष्मजीव ऐसे जीव हैं जो पृथ्वी पर हर जगह मौजूद हैं। हवा में, मिट्टी में, समुद्र की गहराई में, अत्यधिक तापमान वाली जगह पर और हमारे शरीर के ऊपर तथा शरीर के अंदर भी रहते हैं। हम हमेशा इन जीवो के संपर्क में रहते हैं तथा इनसे प्रभाव भी होते है परंतु इन्हें देख नहीं पाते हैं।
माइक्रोऑर्गेनिज्म
सूक्ष्मजीवों को व्हिटाकर के 5 किंगडम डोमेन के अनुसर मोनेरा किंगडम में रखा गया हे। मोनेरा किंगडम में सारे प्रोकैरियोटिक जीवों को रखा गया है। सूक्ष्मजीवों को मुख्य रूप से 2 श्रेणियों में विभाजित किया गया है - प्रोकैरियोटिक और यूकेरियोटिक। प्रोकैरियोट्स में अच्छी तरह से विकसित न्यूक्लियस नहीं होता है लेकिन यूकेरियोट्स में अच्छी तरह से विकसित न्यूक्लियस होता है और यह न्यूक्लियस मेम्ब्रेन से कवर होता है।
सूक्ष्मजीवों में बैक्टीरिया, प्रोटोजोआ, कवक, एक्टिनोमाइसिट्स, नीमेटोड, और वायरस शामिल हैं। वायरस अकोशिकीय (acellular) जीव है। वायरस को सजीव और निर्जीव के बीच जोड़ने वाली कड़ी माना जाता है क्योंकि ये केवल सजीव प्रणाली (living system) के अंदर ही जीवित रह पाते हैं। ये विभिन्न प्रकार की बीमारियों के लिए जिम्मेदार हैं जैसे - बैक्टीरिया से लेकर टाइफाइड, निमोनिया, प्रोटोजोआ से मलेरिया, अमीबियासिस, फंजाई से दाद (Ringworm) और वायरस से सामान्य सर्दी, एड्स और हेपेटाइटिस आदि होता है। ऐसा नहीं है कि सूक्ष्मजीव केवल हमें नुकसान पहुंचाते हैं, बिमारिया करने के साथ - साथ ये हमारे जीवन में बहुत उपयोगी भी हैं। क्या आपने कभी सोचा है कि दूध में थोड़ा सा दही डाल के रखने पर अगले दिन दही केसे बन जाता है? दूध से दही बनाने में लैक्टोबैसिलस एसिडोफिलस (Lactobacillus acidophilus) बैक्टीरिया जिम्मेदार है। इसी प्रकार इडली, डोसा, ब्रेड, पनीर, बीयर, वाइन, रसायन, एंजाइम और विविध प्रकार के एंटीबायोटिक्स के निर्माण में अलग-अलग प्रकार के सूक्ष्मजीवों का उपयोग होता है।
माइक्रोबायोलॉजी का इतिहास
जैसा कि अब हम जानते हैं माइक्रोबायोलॉजी सूक्ष्मजीवों का अध्ययन है, इसलिए माइक्रोबायोलॉजी की शुरुआत सूक्ष्मजीवों की खोज के साथ हुई। सूक्ष्मजीव पृथ्वी पर हमेशा से ही हैं, ये कहना गलत नहीं होगा कि पृथ्वी पर सबसे पहले सूक्ष्मजीव ही बने हैं। आर्किबैक्टीरिया (Archaebacteria) को पृथ्वी की पहली जीवित कोशिका माना जाता है, क्योंकि प्रारंभिक पृथ्वी का तापमान अत्यधिक उच्च था। आर्किबैक्टीरिया हर तरह के चरम पर्यावरण (Extreme environment) में जीवित रह सकता है।सूक्ष्मजीवों का आकार बहुत कम होने से इन्हें साधारण आंखों से देख पाना संभव नहीं था, इसलिए ये जीव सभी के लिए अज्ञात थे। माइक्रोस्कोप के आविष्कार के बाद पहली बार सूक्ष्मजीवों को देखा गया और वही से माइक्रोबायोलॉजी का प्रारम्भ हुआ। आइए हम इसका इतिहास और इसमें योगदान देने वाले प्रसिद्ध वैज्ञानिक के बारे में विस्तार से देखें -
रॉबर्ट हुक (1635-1703)
1665 में रॉबर्ट हुक ने पहली बार माइक्रोस्कोप की मदद से मधुमक्खी के छत्ता के समान संरचना को देखा और इन्हें सेल्युला (सेल) नाम दिया। वास्तव में इन्होने पादप कोशिका (plant cell) की मृत कोशिका दीवारों (dead cell wall) को देखा था। हुक को सेल की खोज का श्रेय दिया जाता है, सेल टर्म भी इनके द्वारा ही दी गई।
एंटनी वान लीउवेनहोक (1632 - 1723)
लीउवेनहोक पहले व्यक्ति हैं जिन्होंने स्वयं द्वारा निर्मित सिंगल लेंस माइक्रोस्कोप (self made single lens microscope) की मदद से जीवित कोशिका को देखा। इन्होने सैंपल के लिए तालाब के पानी का उपयोग किया और बैक्टीरिया, RBC, प्रोटोजोआ और शुक्राणु (sperm) को देखा तथा लिटिल एनिमलक्यूल्स (little animalcules) नाम दिया। इसलिए वास्तविक रूप से लीउवेनहोक ने पहली बार सूक्ष्मजीवों को देखा, इसलिए इन्हें माइक्रोबायोलॉजी का जनक कहा जाता है। असली माइक्रोबियल दुनिया की शुरुआत यहीं से हुई थी। लीउवेनहॉक द्वारा बनाया माइक्रोस्कोप, आज के आधुनिक माइक्रोस्कोप के समान नहीं दिखता था, लेकिन लगभग 50 - 300 गुना आवर्धक (magnify) कर सकता था। लीउवेनहॉक ने अपनी अवलोकनो की विस्तृत रिपोर्ट बनाकर, रॉयल सोसाइटी ऑफ लंदन में सबमिट किया और तभी से माइक्रोबियल वर्ल्ड के दरवाजे सभी के लिए खुल गए। माइक्रोबायोलॉजी में एंटनी वान लीउवेनहॉक का योगदान अद्वितीय है।
एडवर्ड जेनर (1749 - 1823)
स्मॉल्पाक्स (Smallpox) का वैक्सीन एडवर्ड जेनर द्वारा 1796 में विकसित किया गया जो दुनिया का पहला वैक्सीन है। आज जितनी भी वैक्सीन उपलब्ध हैं या विकसित हो रही हैं सभी एडवर्ड जेनर के सिद्धांत पर काम करती हैं। वैक्सीन का विकास और टीकाकरण (Vaccination) की प्रक्रिया जेनर के द्वार ही शुरू हुई।
जेनर ने देखा कि जो लोग काउपाक्स (Cowpox) वाली गाय के आस-पास काम करते है और उनका दूध निकालते है वो लोग दुसरो की तुलना में स्मॉल्पाक्स से संक्रमित नहीं होते थे। इस अवलोकन से जेनर ने अपना प्रयोग शुरू किया और 1796 में काउपाक्स के पस को, स्मॉल्पाक्स से संक्रमित एक बच्चे (उम्र 7-8 वर्ष) में इंजेक्शन द्वार डाला। बच्चे में कुछ लक्षण दिखे जैसे बुखार और कुछ कमजोरी, जैसा कि आज भी टीकाकरण के बाद होता है। इसके पीछे यह सिद्धांत काम करता है कि जब काउपाक्स के वायरस को स्मॉल्पाक्स से संक्रमित बच्चे में डाला जाता है तो, वह संक्रमित व्यक्ति के शरीर में स्मॉल्पाक्स के खिलाफ एंटीबॉडी विकसित कर लेता है। जब व्यक्ति दोबारा कभी स्मॉल्पाक्स वायरस के संपर्क में आता है तो पहले से मौजूद एंटीबॉडी उन वायरस को पहचान लेती है और वायरस को मार देती है जिससे व्यक्ति संक्रमित नहीं होता है।
लुईश पाश्चर (1822 - 1895)
लुईश पाश्चर को आधुनिक सूक्ष्म जीव विज्ञान (Modern Microbiology) के जनक के रूप में जाना जाता है क्योंकि उन्होंने माइक्रोबायोलॉजी की अवधरणाओ के बारे में बहुत गहराई से अध्ययन किया और माइक्रोबायोलॉजी के क्षेत्र में बहुत महत्वपूर्ण योगदान दिया। इन्होने बताया कि सूक्ष्मजीव मिट्टी और हवा में रहते हैं और खाद्य पदार्थ और पेय पदार्थ खराब कर सकते हैं। इन्होने निर्जीव पदार्थ से सजीव की उत्पत्ति के सिद्धांत (Theory of Spontaneous Generation) का भी खंडन किया और रोग का रोगाणु सिद्धांत (Germ Theory of Disease) दिया। पाश्चर ने साबित किया कि वाइन और दूध जैसे तरल खाद्य पदार्थ के खराब होने के लिए सूक्ष्मजीव जिम्मेदार हैं और इसे उच्च तापमान पर गर्म करके स्टरलाइज़ किया जा सकता है, स्टरलाइजेशन की इस प्रक्रिया को लुईस पाश्चर के नाम पर ही पाश्चराइजेशन नाम दिया गया है। पाश्चराइजेशन के साथ - साथ इन्होने स्टरलाइजेशन की अन्य तकनीकें जैसे आटोक्लेव और हॉट एयर ओवन के विकास में भी अपना योगदान दिया। पाश्चर ने किण्वन (Fermentation) की प्रक्रिया से परिचित कराया और दिखाया कि यह सूक्ष्मजीवों की गतिविधि के कारण होता है। इन्होने कॉलेरा, एंथ्रेक्स और रेबीज जैसी वैक्सीन भी विकसित होती हैं।
जोसेफ लिस्टर (1827 - 1912)
इन्हें एंटीसेप्टिक सर्जरी के जनक के रूप में जाना जाता है। लिस्टर के एंटीसेप्टिक्स कॉन्सेप्ट देने से पहले, डॉक्टर्स सर्जरी के पहले और बाद में सर्जिकल उपकरण, मरीज के घाव और अपने हाथों को साफ या स्टेराइल नहीं करते थे। जिसके कारण सर्जरी के बाद संक्रमण (Infection) की उच्च संभावना बनी रहती थी। 1867 में लिस्टर ने प्रयोग किया और देखा कि सर्जरी से पहले हाथो और घावो को 5% कार्बोलिक एसिड से साफ करने से सर्जरी के बाद संक्रमण का खतरा बहुत कम हो जाता है। फिर सारे सर्जन्स को एंटीसेप्टिक सर्जरी का कॉन्सेप्ट बताया। कुछ लोगो द्वारा इन्हें आधुनिक सर्जरी का जनक भी माना जाता है।
रॉबर्ट कोच (1843 - 1910)
कोच ने एंथ्रेक्स सद्वारा संक्रमित गाय से एंथ्रेक्स बेसिलाई (Anthrax bacilli) को आइसोलेट (पृथक) करके अध्ययन किया तथा बताया कि हर बीमारी के लिए एक सूक्ष्मजीव जिम्मेदार होता है, इसे प्रेरक एजेंट (causative agent) भी कहते हैं। प्रेरक एजेंट को आइसोलेट किया जा सकता है और वापस एक स्वस्थ व्यक्ति में इंजेक्ट करने पर वह बीमारी कर सकता है तथा हम प्रेरक एजेंट को फिर से आइसोलेट कर सकते हैं। कोच ने एंथ्रेक्स बेसिलाई के अलावा कॉलेरा बेसिलाई, माइकोबैक्टीरियम ट्यूबरकुलोसिस और ट्यूबरकल बेसिलाई को आइसोलेट किया।कल्चर से बैक्टीरिया के आइसोलेशन के लिए विभिन्न तकनीकें भी दी जैसे हैंगिंग ड्रॉप विधिऔर सोलिड कल्चर मीडिया।
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