Waste water Treatment/Sewage Treatment, Environmental Biotechnology

वेस्ट वाटर/सीवेज ट्रीटमेंट

सभी जीव - जंतुओं तथा पेड़ - पौधों को संरचनात्मक और कार्यात्मक क्रियाओं के लिए पानी की आवश्यकता होती है। इसलिए पानी जीवन के हर रूप के लिए सबसे महत्वपूर्ण तत्व है। लेकिन प्रदूषण के कारण पानी की गुणवत्ता और मात्रा प्रभावित होती है। प्रदूषित जल बीमारियों को फेलाने के लिए सबसे सामान्य स्रोत है। इसके साथ ही इसमें अनेक केमिकल टॉक्सिन पाए जाते हैं। ये सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होता है, इसलिए ये अनुपचारित रूप में झीलों और नदियों में नहीं जाने दिया जाता है। अतः अपशिष्ट/प्रदूषित जल का उपचार करना और पीने के उद्देश्य के लिए शुद्ध करना अत्यंत आवश्यक है।


सीवेज का परिचय 

सीवेज या अपशिष्ट जल में मानव मल, गंदा पानी, औद्योगिक अपशिष्ट, कृषि अपशिष्ट आदि शामिल होते हैं जो सीवेज सिस्टम में प्रवेश करते हैं। सामान्य रूप से सीवेज में लगभग 95.5% पानी और 1-.5% कार्बनिक और अकार्बनिक पदार्थ होते हैं। पानी में निलंबित ठोस पदार्थ में सेल्यूलोज, लिग्नोसेल्यूलोज, प्रोटीन और वसा शामिल हैं। अन्य कार्बनिक पदार्थ घुले हुए होते हैं और आयनिक रूपों में पाए जाते हैं। उद्योगों से निकाले गए विभिन्न अपशिष्ट में डिटर्जेंट, एंटीबायोटिक्स, पेंट, बायोसाइट्स आदि शामिल हैं। 

सीवेज की माइक्रोबायोलॉजी

सीवेज में विभिन्न माइक्रोऑर्गेनिज्म्स (सूक्ष्मजीव) पाए जाते हैं, कुछ इस प्रकार हैं -

बैक्टीरिया

कोलीफॉर्म बैक्टीरिया, (E.coli, क्लेबसिएला, एन्टेरोबैक्टीरिया), स्ट्रेप्टोकोकाई, बैक्टेरॉइड्स, माइक्रोकॉकस, क्लोस्ट्रीडियम, स्यूडोमोनास, प्रोटीएज, लैक्टोबैसिलस, स्पाइरोचीट्स

फंगस

यीस्ट तथा मोल्ड

वायरस

पोलियो वायरस, एडेनोवायरस, हेपेटाइटिस वायरस तथा बैक्टीरियोफेज

सीवेज ट्रीटमेंट का उद्देश्य

  • पैथोजेनिक माइक्रोऑर्गेनिज्म्स को मारने और भूजल एवं सतही जल प्रदूषण को रोकने के लिए।
  • कार्बन पदार्थों को कम करने के लिए।
  • पानी से खनिज निकालने के लिए।

सीवेज वाटर ट्रीटमेंट

सीवेज वाटर ट्रीटमेंट निम्नलिखित स्टेप्स द्वारा किया जाता है-

1. प्राइमरी या फिजिकल ट्रीटमेंट 
2. सेकेंडरी या बायोलॉजिकल ट्रीटमेंट 
3. एडवांस्ड ट्रीटमेंट 
4. टर्शरी या फाइनल ट्रीटमेंट 

1. प्राइमरी या फिजिकल ट्रीटमेंट

इस स्टेप में पानी से सभी सॉलिड सामग्रियों को अलग किया जाता है। सीवेज में तैरने वाली बड़ी सामग्री तथा सेटल होने वाली सॉलिड सामग्री होती है। तैरती हुई सामग्रियों को पहले अलग किया जाता है फिर सीवेज को सेडीमेंटेशन टैंक में स्थानांतरित किया जाता है, ताकि सॉलिड पदार्थ जैसे कि पत्थर, ग्रैन्यूल्स, मेटल्स, रेत आदि नीचे बैठ जाएँ। सेडीमेंटेशन की प्रक्रिया के लिए इम्हॉफ टैंक का उपयोग किया जाता है। एल्युमीनियम, फिटकरी, फेरस, सल्फेट आदि फ्लोक्यूलेटिंग पदार्थों को सीवेज में मिलाया जाता है। ताकि सॉलिड पदार्थ नीचे की ओर जमा हो जाएं। सेडीमेंटेशन टैंक में सेडीमेंटेड सामग्री को स्लज के रूप में जाना जाता है। इस ट्रीटमेंट से 40-60% सॉलिड अपशिष्ट हटा दिया जाता है। प्राइमरी ट्रीटमेंट की प्रक्रिया से BOD (बायोलॉजिकल ऑक्सीजन डिमांड) को 20-25% कम किया जाता है।

2. सेकेंडरी या बायोलॉजिकल ट्रीटमेंट 

इसमें बायोलॉजिकल गतिविधि शामिल है। इसे इस तरह से तैयार किया जाता है जिसमें अधिक से अधिक कार्बोनिक पदार्थ घुल जाते हैं। इस ट्रीटमेंट से BOD भी कम हो जाता है। 
सेकेंडरी ट्रीटमेंट 2 विधियों द्वारा किया जाता है -

a) एरोबिक (अवायवीय) या लिक्विड फेज
b) एनारोबिक (अवायवीय) या सॉलिड फेज 

a) एरोबिक (अवायवीय) या लिक्विड फेज

जैसा कि नाम से पता चलता है इसमे एरोबिक कंडीशन का उपयोग करके वाटर को ट्रीट किया जाता है। इस प्रक्रिया में माइक्रोऑर्गेनिज्म्स द्वारा ऑक्सीजन की उपस्थिति में कार्बनिक पदार्थों का पाचन किया जाता है। सीवेज को एरोबिक डाइजेशन में स्थानांतरित किया जाता है जो 2 प्रकार के फिल्टर द्वारा किया जाता है-

i) ट्रिकलिंग फिल्टर -

यह सीवेज ट्रीटमेंट का एक सरल उपकरण है, जिसमें क्रस्ट स्टोन, बजरी, या सिंथेटिक सामग्री का बेड होता है, जो फ़िल्टर किए गए वाटर को टैंक के नीचे तक पहुंचाता है। ट्रिकलिंग फ़िल्टर में चट्टानों का एक बेड होता है जिसके ऊपर सीवेज या कार्बनिक अपशिष्ट धीरे-धीरे रिसता है। पोरस मटेरियल के बेड के ऊपर एक रिवॉल्विंग स्प्रिंकलर होता है जो इसके ऊपर लिक्विड सीवेज को डिस्ट्रीब्यूट करता है तथा बॉटम में अपशिष्ट कलेक्ट करता है। पोरस  फ़िल्टर बेड मुख्य रूप से Zoogloea ramigera और अन्य स्लाइन उत्पादक बैक्टीरिया की ग्रोथ से कवर हो जाता हैं। बैक्टीरिया द्वारा कार्बनिक पदार्थों का खनिजीकरण हो जाता है, जिससे अकार्बनिक पदार्थ जैसे CO2, अमोनिया (NH3), नाइट्रेट, सल्फेट और फॉस्फेट बनते हैं। सीवेज का BOD इन माइक्रोऑर्गेनिज्म्स द्वारा कम किया जाता है। माइक्रोऑर्गेनिज्म्स छिद्रों के माध्यम से हवा को खींचते हैं। एक नवनिर्मित बेड को कुशलतापूर्वक कार्य करने के लिए कुछ सप्ताह की आवश्यकता होती है जब तक कि Zoogloea फिल्म इसके ऊपर लेपित नहीं हो जाती है। Zoogloea ऑक्सोपॉलीसेकेराइड रिलीज करता है जो एक प्रकार का पॉलीसेकेराइड है और यह प्रकृति में चिपचिपा है। यह विभिन्न बैक्टीरिया द्वारा निर्मित होता है।

ⅱ) एक्टिवेटेड स्लज डाइजेस्टर -

यह एरोबिक ट्रीटमेंट की बहुत सामान्य और अपेक्षाकृत कम लागत वाली विधि है। इस विधि में सबसे पहले अपशिष्ट जल को एक बड़े टैंकर में मिलाया जाता है और हवा प्रदान की जाती है। इसमें अनेक बैक्टीरिया वृद्धि करते हैं और फ्लॉक्स बनाते हैं। प्रोटिस्टा, छोटे जीव तथा फिलामेंटस बैक्टीरिया और फंजाई इस फ्लॉक्स के आस-पास अटैच हो जाते हैं। इसके बाद की ऑक्सीकरण प्रक्रिया ट्रिकलिंग फ़िल्टर की तरह ही होती है। इसमें फ्लॉक्स वाले लिक्विड को होल्डिंग टैंक में पंप किया जाता है, जिससे फ्लॉक्स नीचे सेटल हो जाते है। कुछ फ़्लॉक्स मटेरियल एयरएक्टर में ऊपर ही रह जाता है, इन्हें एक्टिवेटिड स्लज कहा जाता है। वे दूसरे लोट के लिए इनोकुलम की तरह कार्य करते हैं। बचे हुए लिक्विड को एनारोबिक स्लज डाइजेस्टर में डालकर पंप किया जाता है तथा निकाल के सूखाकर बर्न किया जाता है और फर्टिलाइजर की तरह उपयोग किया जाता है।

अपशिष्ट जल एक्टिवेटिड स्लज टैंक में सामान्यतः 5-10 घंटे के लिए रहता है। यह समय पूर्ण ऑक्सीकरण के लिए बहुत कम होता है लेकिन इतने समय में बहुत सारे घुलनशील कार्बनिक मैटर फ्लॉक्स में अवशोषित हो जाते हैं और पानी की BOD बहुत कम हो जाती है। इस फ़्लॉक्स का एनारोबिक डाइजेस्टर में CO2 और मीथेन में रूपांतरण कर दिया जाता है।

b) एनारोबिक (अवायवीय) या सॉलिड फेज 

एरोबिक सीवेज ट्रीटमेंट से निकले स्लज तथा प्राइमरी ट्रीटमेंट में नीचे बैठे पदार्थ को साथ-साथ एनारोबिक डाइजेस्टर की प्रक्रिया द्वारा आगे एनारोबिक रूप से उपचारित किया जाता है। इस डाइजेस्टर का उपयोग केवल नीचे बैठे सीवेज स्लज की प्रोसेसिंग और बहुत उच्च BOD वाले इंडस्ट्रियल अपशिष्ट के उपचार के लिए किया जाता है। एनारोबिक डाइजेस्टर बड़े फर्मेंटेशन टैंक होते हैं, जो अनुपचारित स्लज उत्पाद की निरंतर आपूर्ति के साथ अवायवीय रूप से संचालित करने के लिए डिज़ाइन किए गए हैं। एनारोबिक डाइजेशन 3 स्टेप्स को शामिल करता है -
1. फर्मेंटेशन -

अवायवीय ऑर्गेनिज्म्स से फर्मेंटेशन की प्रक्रिया द्वारा कार्बनिक एसिड्स और Co2 का निर्माण होता है, अवायवीय बैक्टीरिया का उदाहरण बिफिडोबैक्टीरियम, क्लॉस्ट्रिडियम, स्ट्रेप्टोकोकाई हैं।

2. एसिडोजेनिक रिएक्शन -

फर्मेंटेशन के दौरान उत्पादित उत्पाद (ब्यूटायरेट, लैक्टेट, इथेनॉल आदि) को कई एसिटोजेनिक बैक्टीरिया द्वारा सब्सट्रेट की तरह उपयोग किया जाता है। एसिटोबैक्टीरियम, सिंट्रोफोबैक्टर आदि एसिडोजेनिक रिएक्शन की प्रक्रिया द्वारा एसिटेट H2 और Co2 का निर्माण होता है।

3. मीथेनोजेनेसिस -
एसिडोजेनेसिस के दौरान उत्पाद का उपयोग मीथेनोजेनिक बैक्टीरिया द्वारा किया जाता है, उदाहरण  मीथेनोसारसिना, मीथेनोथ्रिक्स आदि।

एनारोबिक डाइजेशन का अंतिम उत्पाद गैसों, माइक्रोबियल बायोमास और नॉन-बायोडिग्रेडेबल अवशेषों का मिश्रण है, उदाहरण के लिए हैवी मेटल्स, पॉलीक्लोरीनेटेड बाइफिनाइल्स।

3. एडवांस्ड ट्रीटमेंट 

एडवांस्ड ट्रीटमेंट से नॉन-बायोडिग्रेडेबल कार्बनिक प्रदूषक और खनिज, पोषक तत्व मुख्य रूप से नाइट्रोजन, फास्फोरस, लवण आदि को हटाया जाता है। नाइट्रोजन और फास्फोरस युक्त सीवेज जब छोड़ा जाता है तो इससे यूट्रोफिकेशन होता है जो एक गंभीर समस्या है। जब सीवेज में पोषक तत्व अचानक अधिक मात्रा में पहुंच जाते हैं तो परिणामस्वरूप एल्गल ब्लूम का विकास होता है। यूट्रोफिकेशन को रोकने के लिए सीवेज से फॉस्फेट, कैल्शियम, आयरन, एल्युमीनियम, साल्ट्स  को बाहर निकाला जाता है।

4. टर्शरी या फाइनल ट्रीटमेंट 

सीवेज ट्रीटमेंट के अंतिम स्टेप में क्लोरीनेशन किया जाता है, जिसके कारण विभिन्न ऑर्गेनिज्म्स जैसे  एंटरोपैथोजेनिक बैक्टीरिया और वायरस मर जाते हैं, जिन्हें पिछले उपचार में ट्रैक नहीं किया गया था। अब इस क्लोरीनयुक्त पानी को जलाशय में छोड़ा जाता है जिसका उपयोग विभिन्न कृषि प्रयोजनों के लिए किया जाता है। 

सॉलिड प्रोसेसिंग 

डाइजेशन के बाद बचे हुए स्लज को जिम्प्रो प्रोसेस द्वारा पानी निकालने के लिए डिस्पोज किया जाता है।

जिम्प्रो प्रोसेस

इस प्रक्रिया में सांद्रित स्लज को उच्च दाब और उच्च तापमान वाली हवा से गुजारा जाता है, जिसके कारण ऑक्सीकरण होता है। इस प्रक्रिया में ठोस अपशिष्ट से 90% पानी निकाल दिया जाता है। हीटिंग ट्रीटमेंट से रोगजनक जीव मर जाते हैं। बिना पानी वाले ट्रीटेड स्लज को बाजार में उर्वरक के रूप में बेचा जाता है। यह उर्वरक N2, P, K हैं।