बायोसेंसर क्या है ?
बायोसेंसर एक ऐसा सेंसिंग डिवाइस है जो बायोलॉजिकल सिस्टम को डायरेक्ट शामिल किये बिना किसी पदार्थ की सांद्रता या अन्य बायोलॉजिकल पैरामीटर को निर्धारित करता है। बायोसेंसर ट्रांसड्यूसर का उपयोग करके बायोलॉजिकल सेंसिंग एलिमेंट तथा डिटेक्टर के बिच कनेक्शन बनता है।
बायो का अर्थ है - जीवित सिस्टम तथा सेंसर का अर्थ है - किसी भी चीज को डिटेक्ट या सेन्स करने वाला डिवाइस, इस प्रकार बायोसेंसर शब्द का अर्थ है बायोलॉजिकल रिस्पांस को सेन्स करके इलेक्ट्रिकल सिग्नल में परिवर्तित करने वाला डिवाइस। सबसे अधिक ज्ञात बायोसेंसर ग्लूकोज बायोसेंसर है।
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बायोसेंसर की परिभाषा
बायोसेंसर एक एनालिटिकल डिवाइस है जिसमें एक इमोबिलाइज्ड बायोलॉजिकल मटेरियल (जो एंजाइम, एंटीबायोटिक्स, हॉर्मोन, न्यूक्लिक एसिड या सम्पूर्ण सेल हो सकता है) होता है, जो एनालाइट (जिस पदार्थ का पता लगाना है) से इंटरैक्ट करके फिजिकल, केमिकल या इलेक्ट्रिकल सिग्नल्स उत्पन्न करता है, जिन्हे मापा जा सकता है।
बायोसेंसर का प्रिंसिपल/सिद्धांत
बायोसेंसर मुख्य रूप से सिग्नल ट्रांसडक्शन के सिद्धांत पर कार्य करता है। मुख्यतः बायोलॉजिकल मटेरियल इमोबिलाइज्ड एंजाइम होता है जिसे ट्रांसड्यूसर के निकट संपर्क में लाया जाता है। बायोलॉजिकल मटेरियल पर एनालाइट की बाइंडिंग होने के बाद एक मापन योग्य इलेक्ट्रॉनिक रिस्पांस उतपन्न करता है। एनालाइट प्रोडक्ट में परिवर्तन हो जाता है तथा इस प्रोडक्ट से संबंधित परिवर्तनों को ट्रांसड्यूसर द्वारा इलेक्ट्रिकल सिग्नल्स में ट्रांसफॉर्म किया जाता है, जिन्हे एम्पलीफीइ करके मापा जाता है।
बायोसेंसर का वर्किंग प्रिंसिपल
बायोसेंसर का वर्किंग प्रिंसिपल इस प्रकार है - बायोलॉजिकल मटेरियल को एक सपोर्ट पर इमोबिलाइज किया जाता है। इमोबिलाइजेशन सपोर्ट एक पारगम्य मेम्ब्रेन होती है, जो की सेंसर के साथ सीधे जुडी होती है। पदार्थ जिसका मापन करना है उसे मेम्ब्रेन के द्वारा गुजारा जाता है, ताकि वह इमोबिलाइज्ड मटेरियल के साथ इंटरैक्ट करके प्रोडक्ट बना सके। ये प्रोडक्ट इलेक्ट्रान, हाइड्रोजन या आयन आदि हो सकते है। प्रोडक्ट अन्य मेम्ब्रेन द्वारा ट्रांसड्यूसर तक पहुँचता है। ट्रांसड्यूसर प्रोडक्ट को इलेक्ट्रिकल सिग्नल में परिवर्तित कर देता है, यह सिग्नल इक्विपमेंट के साथ प्रोसेस होकर एम्पलीफाइ किया जाता है तथा डिस्प्ले किया जाता है, जिसे आसानी से पढ़ा जा सकता है।
बायोसेंसर के घटक तथा मैकेनिज्म
बायोसेंसर के 4 मुख्य घटक होते हैं, जिनका नीचे विस्तार से वर्णन किया गया है-
1. बायोलॉजिकल रिकॉग्निशन एलिमेंट
यह एक अणु या जैविक इकाई है जो टारगेट एनालाइट से इंटरैक्ट करता है। यह एलिमेंट एक एंजाइम, एंटीबॉडी, न्यूक्लिक एसिड या सम्पूर्ण सेल हो सकता है। इनमें से कौन सा रिकॉग्निशन एलिमेंट उपयोग करना है, यह टारगेट एनालाइट (जिसकी सांद्रता का हमें पता लगाना है) पर निर्भर करता है।
बायोलॉजिकल रिकॉग्निशन एलिमेंट की मैकेनिज्म
बायोलॉजिकल रिकॉग्निशन एलिमेंट केवल सैंपल में उपस्थित टारगेट एनालाइट के साथ इंटरैक्ट करता है, जिसके परिणामस्वरूप एक बायोलॉजिकल रिस्पांस उत्पन्न होता है जिससे बायोसेंसर के इलेक्ट्रिकल या ऑप्टिकल गुण में परिवर्तन होता है।
बायोलॉजिकल रिकॉग्निशन एलिमेंट के प्रकार
1. एंजाइम्स: ये बायोकेमिकल रिएक्शन्स को कैटेलाइज करते हैं और विशेषत: सब्सट्रेट्स को पहचानते हैं। उदाहरण के लिए, ग्लूकोज ऑक्सिडेज का उपयोग ग्लूकोज के मापन के लिए किया जाता है।
2. एंटीबॉडीज: ये प्रोटीन होते हैं जो विशिष्ट एंटीजन को पहचानते और बांधते हैं। उदाहरण के लिए, यदि एंटीबॉडी एनालाइट को पहचानने के लिए उपयोग की जा रही है, तो इसे इम्युनोसेंसर कहते हैं।
3. न्यूक्लिक एसिड्स: ये DNA या RNA सीक्वेंस होते हैं, जो विशिष्ट जेनेटिक मटेरियल को पहचानते हैं। उदाहरण के लिए, DNA एनालाइट को पहचानने के लिए न्यूक्लिक एसिड आधारित बायोसेंसर का उपयोग किया जाता है।
4. सेल्स: संपूर्ण सेल्स का उपयोग किया जा सकता है जो विशेष पदार्थों को पहचानते हैं। यह आमतौर पर पर्यावरणीय मॉनिटरिंग और खाद्य सुरक्षा के लिए उपयोग किया जाता है।
बायोलॉजिकल रिकॉग्निशन एलिमेंट का चयन करते समय कुछ बातों का ध्यान रखना चाहिए -
एनालाइट का प्रकार: उस रिकॉग्निशन एलिमेंट का चयन करे जो एनालाइट के साथ सबसे अच्छी तरह से इंटरैक्ट करता है।
सेंसिटिविटी और विशिष्टता: रिकॉग्निशन एलिमेंट की विशिष्टता और संवेदनशीलता की जानकारी पहले से होना चाहिए।
पर्यावरणीय परिस्थितियां: पर्यावरणीय कारकों जैसे- तापमान, pH, और अन्य को नियंत्रित रखना, जो रिकॉग्निशन एलिमेंट की स्थिरता और कार्यक्षमता को प्रभावित कर सकते हैं।
2. ट्रांसड्यूसर
जैसा की नाम से स्पष्ट है, यह बायोलॉजिकल रिस्पांस को इलेक्ट्रिकल, ऑप्टिकल या अन्य मापन योग्य सिग्नल में ट्रांसफॉर्म करता है। यह बायोसेंसर का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। सामान्यतः उपयोग होने वाले ट्रांसड्यूसर में निम्नलिखित शामिल हैं:
1. इलेक्ट्रोड्स: यह बायोकेमिकल रिएक्शन्स से उत्पन्न इलेक्ट्रिकल सिग्नल को मापते हैं।
2. ऑप्टिकल फाइबर्स: यह बायोलॉजिकल इंटरेक्शन से उत्पन्न ऑप्टिकल सिग्नल को मापते हैं।
3.पाईजोइलेक्ट्रिक क्रिस्टल्स: यह मैकेनिकल स्ट्रेस को इलेक्ट्रिकल सिग्नल में परिवर्तित करते हैं।
4. माइक्रोबैलन्स: यह मास या भार के परिवर्तन को मापते हैं और इसे सिग्नल में परिवर्तित करते हैं।
5. थर्मल ट्रांसड्यूसर: यह गर्मी या तापमान के परिवर्तन को मापने के लिए उपयुक्त होते हैं। ये बायोसेंसर में थर्मल रिस्पांस को इलेक्ट्रिकल या डिजिटल सिग्नल में बदलते हैं।
3. एम्पलीफायर
एम्पलीफायर का उपयोग सिग्नल को बढ़ाने के लिए किया जाता है, ताकि बायोसेंसर की सेंसिटिविटी बढ़ाई जा सके। यह विभिन्न प्रकार के सिग्नल, जैसे कि एनालॉग और डिजिटल सिग्नल, को बढ़ा सकता है। एम्पलीफायर सिग्नल को एम्पलीफाइ करता है जिससे आगे इसका विश्लेषण और प्रोसेस किया जा सके। सिग्नल एम्पलीफिकेशन के बाद टारगेट एनालाइट की सांद्रता की सटीक मात्रात्मक जानकारी प्राप्त करने के लिए आउटपुट सिग्नल को प्रोसेस करके विश्लेषण करते है।
4. प्रोसेसर
उपरोक्त प्रोसेस से जो सिग्नल प्राप्त होता है उसके आधार पर प्रोसेसर सैंपल में उपस्थित टारगेट एनालाइट की उपस्थिति तथा सांद्रता को निर्धारित करता है। यह डिजिटल रूप में प्राप्त सिग्नलों को विशिष्ट तरीके से प्रोसेस करता है ताकि उनसे सही जानकारी निकाली जा सके। इससे प्राप्त परिणाम स्क्रीन पर डिजिटली दिखाई देता है जिसे रीड तथा रिकॉर्ड कर सकते है।
बायोसेंसर की विशेषताएँ
1. उच्च संवेदनशील-
बायोसेंसर टारगेट पदार्थों की निम्न सांद्रता के लिए बहुत संवेदनशील होते है तथा बहुत कम मात्रा का भी पता कर सकते है।
2. चयनात्मकता-
जैसा की हमने पहले चर्चा की है, बायोलॉजिकल रिकॉग्निशन एलिमेंट बहुत ही विशिष्ट होता है तथा सैंपल में केवल टारगेट एनालाइट से इंटरैक्ट करता है।
3. तीव्र विश्लेषण-
बायोसेंसर, प्रयोगशाला आधारित मेथड्स की तुलना में बहुत जल्दी सही विश्लेषण परिणाम देते है।
4. पोर्टेबिलिटी-
कई बायोसेंसर कॉम्पैक्ट और पोर्टेबल होते हैं, जिससे साइट पर ही परीक्षण संभव हो जाता है।
5. लागत प्रभावशीलता-
इसकी लागत कम होती है, क्योकि कम सैंपल तथा रिएजेंट आवश्यक होते है जो खरीदने में आसान होते है।
6. जैवअनुकूलता
बायोलॉजिकल रिकॉग्निशन एलिमेंट प्रायः प्राकृतिक सोर्सेज से प्राप्त होते है अतः ये मेडिकल एप्लिकेशन्स में उपयुक्त होते है।
7. प्रयोग करने में आसान-
थोड़ी सी ट्रेनिंग से कोई भी आसानी से उपयोग कर सकता है जैसे ग्लूकोज बायोसेंसर।
बायोसेंसर के प्रकार
बायोसेंसर को इनमें उपयोग होने वाले बायोलॉजिकल रिकॉग्निशन एलिमेंट के प्रकार तथा सिग्नल ट्रांसडक्शन की मेथड के आधार पर निम्न प्रकार वर्गीकृत किया गया है -
1. इलेक्ट्रोकेमिकल बायोसेंसर-
यह सबसे अधिक उपयोग होने वाला बायोसेंसर है। इस प्रकार का बायोसेंसर इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस जैसे- फील्ड इफ़ेक्ट, ट्रांसमीटर या लाइट एमिटिंग डायोड का उपयोग करके विकसित किया जाता है। इसके निम्न प्रकार है-
a) एम्पेरोमेट्रिक बायोसेंसर- यह बायोसेंसर एंजाइम के साथ एनालाइट की रिएक्शन को मापते है तथा मीडिएटर के द्वारा या सीधे ही इलेक्ट्रान उत्पन्न करते है। एम्पेरोमेट्रिक बायोसेंसर में या तो एंजाइम इलेक्ट्रोड होती है या केमिकली मॉडिफाइड इलेक्ट्रोड होती है। इस बायोसेंसर में रेडॉक्स रिएक्शन एंजाइम के द्वारा उत्प्रेरित होती है तथा एंजाइम सीधे ही इलेक्ट्रोड के साथ जुडा रहता है, जिसमे एंजाइम ऑक्सीडाइजेबल सब्सट्रेट के साथ उपस्थित रहता है। इलेक्ट्रान एंजाइम तथा रेडॉक्स मीडिएटर के द्वारा सब्सट्रेट से एंजाइम का पता लगाया जाता है। इस बायोसेंसर में ऑक्सीडेज एंजाइम O2 की आवश्यकता को रिप्लेस कर देता है।
b) पोटेंशियोमेट्रिक बायोसेंसर - यह 2 इलेक्ट्रोड्स के बिच की पोटेंशियल भिन्नता मापता है। पोटेंशियोमेट्रिक बायोसेंसर को प्रायः आयन का पता लगाने के लिए उपयोग किया जाता है, जैसे pH सेंसर्स तथा आयन - सिलेक्टिव इलेक्ट्रोड्स।
c) कंडक्टोमेट्रिक बायोसेंसर - यह सॉल्यूशन की इलेक्ट्रिकल कंडक्टिविटी में होने वाले परिवर्तनों को मापता है। यह आयनिक स्पीशीज का पता लगाने तथा मेटेलिक प्रोसेसेज की मॉनिटरिंग के लिए उपयोग होते है।
2) ऑप्टिकल बायोसेंसर -
यह एनालाइट तथा बायोलॉजिकल रिकॉग्निशन एलिमेंट के बीच इंटरेक्शन का पता लगाने के लिए लाइट का उपयोग करता है। ऑप्टिकल घटना के आधार पर यह निम्न प्रकार में वर्गीकृत किया गया है।
a) सरफेस प्लाज्मा रेजोनेंस बायोसेंसर - यह रिकॉग्निशन एलिमेंट से एनालाइट के बाइंड होने पर सेंसर सरफेस के निकट रिफ्रैक्टिव इंडेक्स में होने वाले परिवर्तनों को मापता है। यह मुख्यतः प्रोटीन इंटरेक्शन अध्यनों तथा ड्रग डेलिवरी में उपयोग किया जाता है।
b) फ्लुओरेसेन्स बायोसेंसर - यह टारगेट एनालाइट की उपस्थिति का पता लगाने के लिए फ्लुओरेसेन्स लेबल्स का उपयोग करता है। ये बहुत संवेदनशील होते है तथा DNA सिक्वेंसिंग व इम्यूनोअसे सहित विभिन्न एप्लिकेशन्स में उपयोग होते है।
c) कलरिमेट्रिक बायोसेंसर - यह एनालाइट तथा रिकॉग्निशन एलिमेंट के बीच इंटरेक्शन के परिणामस्वरूप होने वाले कलर परिवर्तनों का पता लगाता है। यह सिंपल है तथा प्रायः इसका उपयोग घर पर प्रेगनेंसी कन्फर्म करने के लिए प्रेगनेंसी टेस्ट में किया जाता है।
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3) पाईजोइलेक्ट्रिक बायोसेंसर-
यह मास या एकॉस्टिक वेव्स में परिवर्तनों का पता लगाने के लिए क्वार्ट्ज़ क्रिस्टल या अन्य पाईजोइलेक्ट्रिक मटेरियल्स का उपयोग करता है। जब सेंसर सरफेस पर एनालाइट रिकॉग्निशन एलिमेंट से बाइंड होता है, तब यह क्रिस्टल की रेजोनेंस फ्रीक्वेंसी में परिवर्तन करता है। यह बायोसेंसर एंटीजन - एंटीबाडी तथा DNA हाइब्रिडाइजेशन जैसी बायोमॉलिक्यूलर इंटरेक्शन्स का पता लगाने के लिए उपयोग किये जाते है।
4) थर्मल बायोसेंसर-
इन्हें कैलोरिमेट्रिक बायोसेंसर के नाम से भी जाना जाता है, यह बायोकैमिकल रिएक्शंस के परिणामस्वरूप होने वाले तापमान परिवर्तनों को मापता है। यह बायोसेंसर इस सिद्धांत पर आधारित है कि कई बायोलॉजिकल रिएक्शंस हीट को रिलीज या एब्सॉर्ब करती है। ये एंजाइम एक्टिविटी को मापने तथा मेटालिक प्रोसेसेज की मॉनिटरिंग में उपयोग होते है।
5) मैग्नेटिक बायोसेंसर-
मैग्नेटिक बायोसेंसर टारगेट एनालाइट का पता लगाने के लिए मैग्नेटिक पार्टिकल्स या लेबल्स का उपयोग करते है। एनालाइट तथा रिकॉग्निशन एलिमेंट के बीच की इंटरेक्शन मैग्नेटिक गुणों में परिवर्तन उत्पन्न करती है, जो मैग्नेटिक रेजोनेंस जैसी तकनीक का उपयोग करके मापे जा सकते है। इसका उपयोग सेल सॉर्टिंग, पैथोजन का पता लगाने तथा मेडिकल डायग्नोसिस जैसे एप्लिकेशन्स में होता है।
6) एंजाइम - बेस्ड बायोसेंसर-
इस प्रकार के बायोसेंसर एंजाइम को बायोलॉजिकल रिकॉग्निशन एलिमेंट के रूप में उपयोग करते है। एंजाइम टारगेट एनालाइट के साथ विशिष्ट बायोकैमिकल रिएक्शन उत्प्रेरित करता है जिसके परिणामस्वरूप एक मापन योग्य सिग्नल उत्पन्न होता है। यह मुख्यतः क्लिनिकल डायग्नोस्टिक्स, एनवायर्नमेंटल मॉनिटरिंग तथा फ़ूड सेफ्टी में उपयोग किये जाते है। इसका सबसे सामान्य उदाहरण ग्लूकोज बायोसेंसर है जो ग्लूकोज ऑक्सीडेज एंजाइम का उपयोग करता है।
7) इम्यूनोलॉजिकल बायोसेंसर-
इन्हें इम्यूनोसेंसर भी कहते है, और रिकॉग्निशन एलिमेंट के रूप में एंटीबाडी या एंटीजन का उपयोग करते है। ये बहुत ही विशिष्ट होते है तथा पैथोजन्स, टॉक्सिन्स तथा अन्य बायोमॉलिक्यूल्स का पता लगाने के लिए उपयोग किये जाते है। यह बायोसेंसर सामान्यतः क्लिनिकल डायग्नोस्टिक्स, फूड सेफ्टी टेस्टिंग और एनवायर्नमेंटल मॉनिटरिंग में उपयोग होते है।
8) DNA बायोसेंसर-
ये बायोसेंसर रिकॉग्निशन एलिमेंट के रूप में न्यूक्लिक एसिड को उपयोग करते है। यह विशेषतः DNA या RNA सीक्वेंसेस का पता लगाने के लिए डिज़ाइन किये जाते है, जो इन्हें डिजीज डायग्नोसिस, जेनेटिक टेस्टिंग तथा फोरेंसिक एनालिसिस के लिए उपयोगी बनाता है। DNA बायोसेंसर प्रायः हाइब्रिडाइजेशन रिएक्शन का उपयोग करते है, जहाँ सेंसर सरफेस पर टारगेट DNA एक पूरक DNA से बाइंड होता है।
बायोसेंसर के अनुप्रयोग
1. एनवायरमेंटल मॉनिटरिंग
वाटर क्वालिटी के लिए -
वाटर क्वालिटी बायोसेंसर को विभिन्न वाटर पॉल्यूटेंटस जैसे हैवी मेटल्स, माइक्रोबियल कंटामिनेंट्स तथा आर्गेनिक कंपाउंड्स का पता करके वाटर क्वालिटी का विश्लेषण करने के लिए उपयोग किया जाता है।
एयर क्वालिटी के लिए -
वाटर के समान एयर क्वालिटी की जांच करने के लिए एयर क्वालिटी बायोसेंसर का उपयोग किया जाता है, ये एयर में उपस्थित पॉल्यूटेंटस जैसे पार्टिकुलेट मेटर, कार्बन मोनोऑक्साइड, नाइट्रोजन ऑक्साइड तथा परिवर्तनशील आर्गेनिक कम्पाउन्ट्स का पता करते है।
एग्रीकल्चर के लिए -
विभिन्न एग्रीकल्चरल कार्यों तथा एनवायर्नमेंटल रेस्टोरेशन प्रोजेक्ट्स में सॉइल क्वालिटी बायोसेंसर का उपयोग करके सॉइल का pH, विभिन्न मैक्रो तथा माइक्रो न्यूट्रिएंट्स का लेवल एवं अन्य कंटामिनेंट्स का पता करके सॉइल की क्वालिटी का विश्लेषण करते है।
2. मेडिकल डायग्नोसिस
ग्लूकोज मॉनिटरिंग -
डायबिटीज वाले मरीज के ग्लूकोज लेवल को मॉनिटर करने के लिए कंटीन्यूअस ग्लूकोज मॉनिटरिंग सिस्टम उपयोग किया जाता है।
प्रेगनेंसी टेस्ट -
प्रेगनेंसी टेस्ट के लिए उपयोग होने वाली स्ट्रिप्स भी एक सिंपल बायोसेंसर है, जो महिला की यूरिन में ह्यूमन कोरिओनिक गोनेडोट्रोपिन हॉर्मोन का पता करके प्रेगनेंसी की पुष्टि करने में सहायता करता है।
कार्डिएक बायोमार्कर -
कार्डिएक बायोमार्केर बायोसेंसर, ट्रोपिनिन, क्रिएटिन काइनेज MB तथा B टाइप नाइट्रीयूरेटिक पेप्टाइड जैसे विशिष्ट कार्डिएक बायोमार्कर्स का पता करने के लिए उपयोग किया जाता है इन बायोमार्कर्स का बढ़ा हुआ लेवल कार्डिएक इंज्यूरी या हार्ट फेलियर इंडीकेट करता है।
इन्फेक्शस डिजीज -
इन्फेक्शस डिजीज जैसे इन्फ्लूएंजा, HIV, हेपेटाइटिस तथा COVID -19 का पता करने के लिए भी विभिन्न बायोसेंसर विकसित किये गए है, ये बायोसेंसर ब्लड सैम्पल्स में इन डिजीज के कॉजेटिक एजेंट्स जैसे बैक्टीरिया तथा वायरस का पता लगाते है।
3. फूड सेफ्टी में
विभिन्न प्रकार की बेवरेजेज जैसे बियर, वाइन तथा स्पिरिट्स के उत्पादन के दौरान एवं बाद में एल्कोहल कंटेंट का पता करने के लिए बायोसेंसर उपयोग किये जाते है।
विभिन्न फूड आइटम्स में बायोसेंसर द्वारा एंटीऑक्सीडेंट एक्टिविटी का मापन करके फूड हेल्थ तथा सेफ्टी का पता किया जाता है।
4. ड्रग डेवलपमेंट
सरफेस प्लाज्मोंन रेजोनेंस बायोसेंसर -
बायोलॉजिकल खतरे का पता लगाना - बायोसेंसर सैम्पल्स में बायोलॉजिकल एजेंट्स जैसे बैक्टीरिया, वायरस तथा अन्य हानिकारक टॉक्सिन्स का पता करते है।
फ्लुओरेसेन्स टैग्ड या जेनेटिकली एनकोडेड बायोसेंसर -
सेल में विभिन्न बायोलॉजिकल प्रोसेस तथा मॉलिक्यूलर सिस्टम की जाँच करता है।