स्टरलाइजेशन की केमिकल मेथड्स
माइक्रोऑर्गेनिज्म की ग्रोथ को रोकने के लिए या उन्हें पूर्ण रूप से हटाने के लिए विभिन्न प्रकार के केमिकल्स का उपयोग स्टरलाइजेशन प्रक्रिया के दौरान किया जाता है।
कुछ मुख्य केमिकल निम्नलिखित है -
1. फिनोल तथा फेनोलिक कम्पाउंड्स -
सन 1880 में जोसेफ लिस्टर ने सर्वप्रथम फिनोल को डिसइंफेक्टेंट के रूप में उपयोग किया था। फिनोल तथा इसके कम्पाउंड्स बहुत अच्छे व प्रभावी डिसइंफेक्टेंट है। लगभग 5% फिनोल का जलीय विलयन सभी प्रकार के माइक्रोऑर्गेनिज्म्स की वेजिटेटिव सेल्स को शीघ्रता से मार सकता है।
सामान्यतः फिनोल तथा इसके कंपाउंड रंगहीन होते है। इसका 2.5% जलीय विलयन विभिन्न प्रकार की वस्तुओं जैसे लेबोरेटरी इंस्ट्रूमेंट्स, ऑपरेशन में उपयोग होने वाले इंस्ट्रूमेंट्स तथा सरफेस डिसइंफेक्शन के लिए उपयोग किया जाता है।
फिनोल की क्रियाविधि
विभिन्न प्रकार के फिनोलिक कंपाउंड माइक्रोबियल सेल पर विभिन्न प्रकार के प्रभाव डालते है, जैसे -
- बैक्टीरियल सेल मेम्ब्रेन को नष्ट करना
- सेल में उपस्थित प्रोटीन का प्रेसिपिटेशन करना
- सेल के एंजाइम्स को निष्क्रिय करना
- सेल में उपस्थित एमिनो एसिड्स का लीकेज करना आदि
हालांकि फिनोल की कोई विशिष्ट क्रियाविधि ज्ञात नहीं है, किन्तु यह देखा गया है कि फिनोल मेम्ब्रेन के स्ट्रक्चर को भौतिक रूप से हानि पहुँचता है।
2. ऐल्कोहॉल
ऐल्कोहॉल स्टरलाइजेशन के लिए उपयोग होने वाला एक सामान्य केमिकल है। एथिल ऐल्कोहॉल का 50 - 90% विलयन विभिन्न प्रकार की वेजिटेटिव सेल्स के लिए प्रभावी होता है। सामान्यतः विभिन्न प्रकार के माइक्रोऑर्गेनिज्म की ग्रोथ को रोकने के लिए 70% ऐल्कोहॉल उपयोग किया जाता है। ऐल्कोहॉल के संपर्क में आने के लगभग 5 मिनट बाद बैक्टीरियल सेल्स निष्क्रिय हो जाती है।
ऐल्कोहॉल का उपयोग त्वचा पर उपस्थित माइक्रोऑर्गेनिज्म की संख्या को कम करने तथा हैंड क्लीनिंग में किया जाता है। साथ ही यह रूम क्लीनिंग व मेडिकल फैसिलिटीज के डिसइंफेक्शन में भी उपयोगी है।
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ऐल्कोहॉल की क्रियाविधि
ऐल्कोहॉल बैक्टीरियल सेल में उपस्थित प्रोटीन्स को डीनेचर कर देता है, जिसके कारण यह एंटीमाइक्रोबियल एक्टिविटी दर्शाते है। साथ ही सेल के लिपिड को घोल देता है जिसके परिणामस्वरूप बैक्टीरिया मर जाते है। ऐल्कोहॉल डीहाइड्रेटिंग एजेंट के गुण भी रखता है, अर्थात यह माइक्रोबियल सेल्स से जल निकालकर उन्हें ड्राई कर देता है जिससे उनकी सम्पूर्ण केमिकल रिएक्शंस रुक जाती है व मृत्यु हो जाती है।
3. हैलोजन
हैलोजन डिसइंफेक्टेंट के रूप में उपयोग किया जाने वाला एक महत्वपूर्ण केमिकल है। यह माइक्रोबियल सेल में उपस्थित सेल वाल, प्रोटीन तथा न्यूक्लिक एसिड को नष्ट करके इन्हे मार देता है व बढ़ने से रोकता है। स्टरलाइजेशन के लिए मुख्य रूप से उपयोग होने वाले हैलोजन निम्न है -
I) आयोडीन
II) क्लोरीन
I) आयोडीन
आयोडीन स्टरलाइजेशन के लिए उपयोग होने वाला सबसे पुराना तथा प्रभावी जर्मिसाइडल एजेंट है। इसका उपयोग लगभग 1830 से हो रहा है, पुराने समय में आयोडीन का उपयोग टिंचर आयोडीन के रूप में किया जाता था। शुद्ध आयोडीन एक ब्लूइस ब्लैक कलर का क्रिस्टलाइज तत्व है। यह जल में आंशिक रूप से जबकि एलकोहॉल में पूर्ण रूप से घुलनशील होता है।
आयोडीन का उपयोग मुख्य रूप से स्किन के डिसइंफेक्शन के लिए किया जाता है। इसके अतिरिक्त आयोडीन युक्त विभिन्न कंपाउंड्स का उपयोग जल के डिसइंफेक्शन, हवा के डिसइंफेक्शन तथा खादय पदार्थों के सेनीफिकेशन के लिए किया जाता है।
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आयोडीन की क्रियाविधि
आयोडीन एक ऑक्सिडाइजिंग एजेंट है, अतः यह सेल में उपस्थित प्रोटीन जैसे विभिन्न आवश्यक कंपाउंड्स का ऑक्सीडेशन कर देता है। कुछ वैज्ञानिकों के अनुसार आयोडीन एंजाइम में उपस्थित टायरोसिन के साथ क्रिया करके डीऑडोटायरोसिन बनाता है इसके कारण एंजाइम डीनेचर हो जाते है व अपनी एक्टिविटी खो देते है।
II) क्लोरीन
क्लोरीन को डिसइंफेक्शन के लिए सीधे गैस के रूप में या विभिन्न केमिकल कंपाउंड के रूप में उपयोग किया जाता है। क्लोरीन गैस को हैंडल करना कठिन होता है, इसलिए इसके विभिन्न कंपाउंड उपयोग किये जाते है। हाइपोक्लोराइट के विभिन्न प्रकारों का उपयोग डिसइंफेक्शन के लिए किया जा सकता है जैसे कैल्शियम हाइपोक्लोराइट तथा सोडियम हाइपोक्लोराइट। क्लोरामाइन का उपयोग डिसइंफेक्टेंट, सैनिटाइजिंग एजेंट तथा एंटीसेप्टिक के रूप में किया जा सकता है।
अधिकांशतः क्लोरीन का उपयोग वाटर ट्रीटमेंट, फ़ूड इंडस्ट्रीज, घरेलु उपयोग तथा मेडिसिन बनाने में किया जाता है। इसी प्रकार क्लोरीन के कंपाउंड्स का उपयोग घावों को साफ करने तथा अन्य प्रकार के डिसइंफेक्टेंट के रूप में किया जाता है।
क्लोरीन की क्रियाविधि
जब क्लोरीन जल के संपर्क में आती है तब हाइड्रोक्लोराइड एसिड तथा हाइपोक्लोरस एसिड का निर्माण करती है। इस प्रकार बना हाइपोक्लोरस एसिड HCl तथा नवजात (nascent) ऑक्सीजन में टूट जाता है। यह नवजात ऑक्सीजन स्ट्रॉंग ऑक्सिडाइजिंग एजेंट होती है, जो सेल्स में उपस्थित विभिन्न अवयवों का ऑक्सीडेशन कर देती है जिसके परिणामस्वरूप माइक्रोऑर्गेनिज्म मर जाते है।
4. डिटर्जेंट्स
ये क्लीनिंग के लिए उपयोग होने वाले ऐसे केमिकल एजेंट्स है जिनसे हम सब भलीभांति परिचित है। डिटर्जेंट सरफेक्टेंट्स का एक मिश्रण है, जिसे क्लीनिंग या वॉशिंग के उद्देश्य के लिए बनाया गया है। ये लिक्विड सोल्युशन, पॉवडर, टिकिया या केक के रूप में उपलब्ध होता है। इसकी एक साइड हाइड्रोफिलिक तथा दूसरी साइड हाइड्रोफोबिक होती है, अर्थात इसकी संरचना एम्फीपेथिक होती है।
डिटर्जेंट का उपयोग स्किन पर उपस्थित माइक्रोऑर्गेनिज्म की संख्या को कम करने के लिए किया जाता है। इसी प्रकार कपड़ो तथा अन्य वस्तुओं को माइक्रोब्स व अन्य गंदगी से मुक्त करने के लिए भी किया जाता है।
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डिटर्जेंट की क्रियाविधि
डिटर्जेंट किसी वस्तु के सरफेस टेंशन को कम कर देते है, जिससे वस्तुओ के गीले होने की क्षमता बढ़ जाती है और वे आसानी से जल में घुल जाते है। जब साबुन या डिटर्जेंट को स्किन पर लगाया जाता है तब वह ऑइल तथा गंदगी के साथ मिलकर इमिशन बना लेते है जिसे जल द्वारा धोकर आसानी से हटाया जा सकता है।
5. हैवी मेटल्स तथा उनके कंपाउंड्स
अधिकांश हैवी मेटल्स तथा उनके कंपाउंड्स माइक्रोऑर्गेनिज्म की ग्रोथ को कंट्रोल करने के लिए उपयोग किये जाते है, जैसे - मरकरी, सिल्वर तथा कॉपर आदि। बहुत सी स्थितियों में इन्हें एंटीसेप्टिक के रूप में उपयोग किया जाता है।
कुछ हैवी मेटल्स जैसे सिल्वर के कंपाउंड का उपयोग ऑय ड्रॉप एवं इयर ड्रॉप बनाने में किया जाता है, जो आँखों में होने वाले गोनोकॉकल इन्फेक्शन को रोकता है। इसके अतिरिक्त कॉपर तथा सल्फेट का उपयोग स्विमिंग पूल आदि में किया जाता है क्योंकि ये अच्छे एंटीमाइक्रोबियल एजेंट है।
हैवी मेटल्स की क्रियाविधि
विभिन्न हैवी मेटल्स तथा इनके कंपाउंड माइक्रोबियल सेल के अंदर जाने के बाद प्रोटीन सल्फाहाइड्रिल ग्रुप पर अटैक करके उसे निष्क्रिय कर देते है। जिससे एंजाइम की एक्टिविटी रुक जाती है, परिणामस्वरूप सेल नष्ट हो जाती है।
6. डाईज
माइक्रोऑर्गेनिज्म को कंट्रोल करने के लिए सामान्यतः 2 प्रकार की डाई का उपयोग किया जाता है -
I) ट्राइफिनाइलमीथेन डाई
II) एक्रिडिन डाई
I) ट्राइफिनाइलमीथेन डाई
इसके अंतर्गत मैलेकाइट ग्रीन, क्रिस्टल वायलेट, जेन्सियन वायलेट तथा ब्रिलियंट ग्रीन डाई आती है। ग्राम पॉजिटिव बैक्टीरिया इन डाईज से बहुत सेंसिटिव होते है, उदाहरण के लिए क्रिस्टल वायलेट का 1:20000 डायल्यूशन ग्राम पॉजिटिव कोकई की ग्रोथ को रोकता है। इन डाइज के उपयोग द्वारा विभिन्न प्रकार के सिलेक्टिव मीडिया बनाये जाते है, जो ग्राम पॉजिटिव बैक्टीरिया की ग्रोथ को रोकते है तथा केवल ग्राम नेगेटिव बैक्टीरिया की ग्रोथ को होने देते है।
II) एक्रिडिन डाई
एक्रिडिन डाई एंटीमाइक्रोबियल एजेंट के रूप में उपयोग होने वाली पहली डाई है। यह डाई बैक्टीरिया के लिए सिलेक्टिव इन्हिबीशन दर्शाती है, उदाहरण के लिए सामान्यतः ये स्टेफाइलोकोकई तथा गोनोकोकई की ग्रोथ को रोकती है।
क्रियाविधि
इनकी क्रियाविधि स्पष्ट रूप से ज्ञात नहीं है, पर ये माइक्रोबियल सेल से अटैच होकर DNA सिंथेसिस को रोक कर सेल को ग्रोथ करने से रोकती है।