स्टरलाइजेशन
जैसा की हम जानते है, माइक्रोऑर्गेनिज्म्स हर जगह पाए जाते है व कंटामिनेशन अथवा कई इन्फेक्शन वाली बीमारियाँ फैलाते है, अतः किसी वस्तु से इन्हे हटाना अतिआवश्यक हो जाता है। स्टरलाइजेशन ( निर्जमीकरण या विसंक्रमण ) एक ऐसी प्रकिया को कहा जाता है, जिसके अंतर्गत किसी स्थान या वस्तु से सभी प्रकार के माइक्रोऑर्गेनिज्म्स को पूरी तरह से हटाया जाता है।
माइक्रोबायोलॉजी प्रयोगशाला में माइक्रोऑर्गेनिज्म्स को पूरी तरह से हटाने के लिए कई प्रकार की मेथड्स या टेक्निक्स का उपयोग किया जाता है जो निम्न प्रकार है -
1. स्टरलाइजेशन
किसी वस्तु या ऑब्जेक्ट में उपस्थित सभी प्रकार के माइक्रोऑर्गेनिज्म्स को पूरी तरह से हटाना या मारना स्टरलाइजेशन कहलाता है।
स्टरलाइजेशन की कई अलग - अलग मेथड्स है, जो उस वस्तु पर निर्भर करती है जिसका स्टरलाइजेशन किया जाना है।
कुछ महत्वपूर्ण मेथड्स निम्नलिखित है-
1. ऑटोक्लेविंग
2. हॉट एयर ओवन
3. फिल्ट्रेशन
4. रेडिएशन
5. केमिकल स्टरलाइजेशन
2. डिसइंफेक्शन
किसी वस्तु की सरफेस पर उपस्थित सभी प्रकार के माइक्रोऑर्गेनिज्म्स को पूरी तरह से हटाने को डिसइंफेक्शन कहा जाता है। इस प्रक्रिया में वस्तु के अंदर उपस्थित माइक्रोऑर्गेनिज्म्स को पूर्ण रूप से नहीं हटाया जाता है, अपितु उस वस्तु की केवल सरफेस पर उपस्थित माइक्रोऑर्गेनिज्म्स को मारा जाता है।
इस मेथड में माइक्रोऑर्गेनिज्म्स को मारने के लिए एक केमिकल एजेंट का उपयोग किया जाता है, जिसे डिसइंफेक्टेंट कहा जाता है। अधिकांश डिसइंफेक्टेंट केवल वेजीटेटिव सेल्स को ही मारते है तथा स्पोर्स को नहीं मारते है।
उदाहरण - 70% एलकोहॉल, UV रेडिएशन, फिनॉल आदि।
3. सैनिटेशन
सैनिटेशन की प्रक्रिया में किसी वस्तु से माइक्रोऑर्गेनिज्म्स को पूरी तरह से हटाया नहीं जाता है, बल्कि उनकी संख्या को बहुत ही कम कर दिया जाता है। इस प्रक्रिया के लिए उपयोग होने वाले केमिकल एजेंट को सेनिटाइजर कहा जाता है।
उदाहरण - साबुन या डिटर्जेंट।
4. एसेप्सिस
ऐसे माइक्रोऑर्गेनिज्म्स जो सेप्सिस (घाव का सड़ना) पैदा करते है, सेप्टिक (विषाक्त) कहलाते है तथा ऐसी प्रक्रिया जिसके द्वारा सेप्सिस करने वाले माइक्रोऑर्गेनिज्म्स को मारा जाता है एसेप्सिस कहलाती है। इस प्रक्रिया में उपयोग होने वाले केमिकल एजेंट्स को एंटीसेप्टिक कहा जाता है।
स्टरलाइजेशन की फिजिकल मेथड्स
माइक्रोऑर्गेनिज्म्स की ग्रोथ को कंट्रोल करने के लिए निम्नलिखित फिजिकल स्टरलाइजेशन मेथड्स का उपयोग किया जाता है -
1. हीट
2. फिल्ट्रेशन
3. रेडिएशन
1. हीट स्टरलाइजेशन
विभिन्न वस्तुओं विशेषकर लेबोरेटरी आइटम्स जैसे ग्लास के सामानों को स्टेरिलाइज करने के लिए हीट स्टरलाइजेशन सबसे आसान तथा सिंपल मेथड है, क्योंकि हम जानते है अधिक तापमान पर माइक्रोऑर्गेनिज्म्स ग्रोथ नहीं कर पाते तथा मर जाते है। हीट द्वारा माइक्रोऑर्गेनिज्म्स को मारने के लिए 2 तरह की हीट मेथड्स उपयोग की जाती है -
I) मॉइस्ट हीट स्टरलाइजेशन
II) ड्राई हीट स्टरलाइजेशन
I) मॉइस्ट हीट स्टरलाइजेशन
मॉइस्ट हीट स्टरलाइजेशन ड्राई हीट स्टरलाइजेशन की तुलना में बहुत अधिक प्रभावी होता है क्योंकि मॉइस्ट हीट माइक्रोऑर्गेनिज्म्स में उपस्थित प्रोटीन्स तथा एंजाइम्स को डीनेचर कर देती है। जिससे उनकी समस्त बायोकैमिकल रिएक्शंस रुक जाती है तथा उनका स्ट्रक्चर टूट जाता है एवं वे मर जाते है।
मॉइस्ट हीट द्वारा स्टरलाइजेशन 3 प्रकार से किया जा सकता है -
a) ऑटोक्लेविंग
b) पास्चुराइजेशन
c) बॉइलिंग
a) ऑटोक्लेविंग
ऑटोक्लेव में उच्च तापमान के साथ उच्च प्रेशर (दबाव) का उपयोग किया जाता है अर्थात ऑटोक्लेव स्टीम अंडर प्रेशर के सिद्धांत पर काम करता है। किसी हीट रेसिस्टेंट वस्तु को स्टेरिलाइज करने के लिए यह सबसे अधिक उपयुक्त मेथड है। जिस ऑब्जेक्ट को स्टेरिलाइज करना है उसे ऑटोक्लेव में 121°C तापमान तथा 15lbs प्रेशर पर 15 मिनट के लिए रखा जाता है। ऑटोक्लेव के अंदर का वातावरण किसी भी ऑर्गेनिज्म के लिए अनुकूलित नहीं रहता है, जिससे वह पूरी तरह से नष्ट हो जाते है।
b) पास्चुराइजेशन
यह तकनीक सबसे पहले लुईस पाश्चर द्वारा वाइन को स्टेरिलाइज करने के लिए उपयोग की गयी थी, अतः उन्ही के नाम पर इस मेथड का नाम पास्चुराइजेशन रखा गया । इस मेथड में जिस लिक्विड को स्टेरिलाइज करना है उसे उच्च तापमान पर एक निश्चित समय के लिए रखा जाता है तथा फिर अचानक ठंडा कर दिया जाता है, जिससे उसमें उपस्थित सभी माइक्रोऑर्गेनिज्म्स मर जाते है। उदहारण के लिए 63.2°C तापमान पर वाइन को आधे घंटे के लिए रखने पर उसमे उपस्थित माइक्रोब्स मर जाते है।
c) बॉइलिंग
इस मेथड के द्वारा किसी भी लिक्विड का स्टरलाइजेशन किया जाता है। यह स्टरलाइजेशन की सबसे सिंपल तथा आसान मेथड है। पानी तथा दूध को उबाल कर बैक्टीरिया रहित करना बॉइलिंग का एक बहुत ही सामान्य उदाहरण है जो हम हमारे दैनिक जीवन में करते है।
II) ड्राई हीट स्टरलाइजेशन
ड्राई हीट स्टरलाइजेशन को हॉट एयर स्टरलाइजेशन भी कहते है। इस प्रकार की स्टरलाइजेशन तकनीक का उपयोग लेबोरेटरी आइटम्स जैसे पेट्री प्लेट्स, टेस्ट ट्यूब्स, फ्लास्क्स, बर्नर्स तथा बीकर आदि अन्य ठोस वस्तुओं को माइक्रोऑर्गेनिज्म्स रहित करने के लिए किया जाता है। इस मेथड द्वारा हीट सेंसिटिव आइटम्स जैसे रबर, प्लास्टिक व फेब्रिक आदि का स्टरलाइजेशन नहीं होता है।
ड्राई हीट स्टरलाइजेशन माइक्रोऑर्गेनिज्म्स में उपस्थित विभिन्न केमिकल कंपोनेंट्स के केमिकल ऑक्सीडेशन के सिद्धांत पर काम करता है। माइक्रोबायोलॉजी लेबोरेटरी में ड्राई हीट स्टरलाइजेशन के लिए एक इंस्ट्रूमेंट उपयोग किया जाता है जिसे हॉट एयर ओवन कहते है। इसमें स्टेरिलाइज किये जाने वाले आइटम्स को 60 - 180 डिग्री सेल्सियस पर 1 - 2 घंटे के लिए रखा जाता है।
(Image by Thirdman on Pexels)
2. फिल्ट्रेशन
फिल्ट्रेशन मेथड द्वारा लिक्विड या गैसीय पदार्थ का स्टरलाइजेशन किया जाता है। स्टरलाइजेशन के लिए विभिन्न प्रकार के फिल्टर्स का उपयोग किया जाता है, जिनका चयन स्टेरिलाइज किये जाने वाले मटेरियल पर निर्भर होता है।
a) Seitz फिल्टर -
यह फिल्टर एस्बेस्टस के फ्लैट पैड के बने होते है। यह मुख्य रूप से माइक्रोबायोलॉजी लेबोरेटरी तथा फार्मास्यूटिकल इंडस्ट्री में उपयोग किया जाता है।
b) Berkefeld फिल्टर -
यह फिल्टर डाइएटमेसियस अर्थ के बने होते है। यह माइकोप्लाज्मा तथा वायरस को नहीं रोक सकते है।
c) Chamberland फिल्टर -
फिल्टर को पाश्चर चैम्बरलैंड फिल्टर भी कहा जाता है। यह पॉर्सेलेन फिल्टर है जिसका साइज 0.1 माइक्रोमीटर होता है।
इनके अतिरिक्त माइक्रोबायोलॉजी लेबोरेटरी में कुछ विशेष प्रकार के फिल्टर्स भी उपयोग किये जाते है जैसे -
मेम्ब्रेन फिल्टर -
यह सामान्यतः मिलीपोर फिल्टर भी कहलाता है तथा 0.45 माइक्रोमीटर से बड़े ऑर्गेनिज्म्स को रोकता है।इस फिल्टर पर फसे बैक्टीरिया का विश्लेषण करने के लिए फिल्टर को मीडिया प्लेट पर ट्रांसफर करके इन्क्यूबेशन के बाद बैक्टीरियल ग्रोथ का अध्ययन कर सकते है।
HEPA फिल्टर -
इसका पूरा नाम हाई एफिशिएंसी पार्टिकुलेट एयर है। यह फिल्टर माइक्रोबायोलॉजी लेबोरेटरी में उपयोग होने वाले लेमीनार एयर फ्लो में लगा रहता है। लेमीनार एयर फ्लो में प्रवेश करने वाली हवा इस फिल्टर से होकर गुजरती है, जिससे हवा में उपस्थित सारे माइक्रोब्स फिल्टर में फस जाते है और लेमिनार चैम्बर में केवल स्टेरिलाइज हवा पहुँचती है।
(Image by Czapp Arpad on Pexels)
3. इन्सिनरेशन
जब किसी वस्तु को सीधे ही बुन्सेन बर्नर की फ्लेम में रखकर स्टेरिलाइज किया जाता है, तब यह प्रक्रिया इन्सिनरेशन कहलाती है।
4. रेडिएशन
स्टरलाइजेशन प्रोसेस में विभिन्न प्रकार की रेडिएशन का भी उपयोग किया जाता है यह निम्न है -
a) आयोनाइजिंग रेडिएशन
यह रेडिएशन उच्च ऊर्जा युक्त इलेक्ट्रोमैग्नेटिक रेडिएशन्स होती है, जैसे अल्फा, बीटा तथा गामा आदि रेडिएशन।ये रेडिएशन्स माइक्रोऑर्गेनिज्म्स के जैविक अणुओं का आयोनाइजेशन करती है, इसलिए इन्हे आयोनाइजिंग
रेडिएशन कहा जाता है।
रेडिएशन कहा जाता है।
b) नॉन-आयोनाइजिंग रेडिएशन
ऐसी रेडिएशन जिनकी ऊर्जा कम उत्पन्न होती है और यह माइक्रोऑर्गेनिज्म्स के जैविक अणुओं का आयोनाइजेशन नहीं करती है, नॉन-आयोनाइजिंग रेडिएशन कहलाती है जैसे UV रेडिएशन, X - रे। ये रेडिएशन्स माइक्रोऑर्गेनिज्म्स के DNA तथा RNA पर अपना प्रभाव डालती है। जिससे उनकी संरचना में परिवर्तन आ जाता है और उनमे म्युटेशन उत्पन्न हो जाता है, जिसके परिणामस्वरूप वो मर जाते है।