Branches of Microbiology माइक्रोबायोलॉजी की शाखाएँ, B.Sc. 1 Year Microbiology Paper 1 General Microbiology and Cell Structure Unit 1

B.Sc. 1 Year Microbiology Paper 1 General Microbiology and Cell Structure Unit 1

                                              

 Branches of Microbiology

माइक्रोबायोलॉजी की शाखाएँ



जैसा कि हम जानते हैं, माइक्रोबायोलॉजी के क्षेत्र में हम माइक्रोऑर्गेनिज्म के बारे में अध्ययन करते हैं। जिस प्रकार माइक्रोबायोलॉजी, बायोलॉजी की एक शाखा है, उसी प्रकार माइक्रोबायोलॉजी की भी 2 शाखाएँ हैं। प्योर/बेसिक माइक्रोबायोलॉजी तथा एप्लाइड माइक्रोबायोलॉजी


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A) प्योर/बेसिक माइक्रोबायोलॉजी  

इसके अंतर्गत 6 शाखाएँ आती हैं -


1. बैक्टीरियोलॉजी (Bacteriology)

लुईस पाश्चर (Louis Pasteur) को बैक्टीरियोलॉजी का फादर (जनक) माना जाता है। माइक्रोबायोलॉजी की इस शाखा में बैक्टीरिया से संबंधित अध्ययन होता है। इसमे बैक्टीरिया की विशेषताएं जैसे आकृति विज्ञान (morphology), आनुवंशिकी (genetics), जैव रसायन (biochemistry) और पारिस्थितिकी (ecology) से संबंधित विषयों पर अध्ययन किया जाता है। बैक्टीरिया की पहचान और कल्टीवेशन करके उद्योग (industry), चिकित्सा (medicine), जैव प्रौद्योगिकी (biotechnology) और कृषि (agriculture) में इनके अनुप्रयोग पर रिसर्च किया जाता है। विभिन्न क्षेत्रों में बैक्टीरिया के फायदे के साथ-साथ बैक्टीरिया से होने वाली बीमारियाँ और उनके इलाज का अध्ययन भी किया जाता है।चूंकि बैक्टीरिया पृथ्वी पर हर जगह मौजूद हैं और हर सजीव और निर्जीव चीजों को किसी तरह से प्रभावित करते हैं, इन सभी प्रतिक्रियाओं का अध्ययन बैक्टीरियोलॉजी मे शामिल है।

2. माइकोलॉजी (Mycology)

एलियास मैग्नस फ्राइज़ ( Elias Magnus Fries) को कभी-कभी माइकोलॉजी का फादर कहा जाता है।माइकोलॉजी के अंतरगत फंजाई से संबंधित अध्ययन किया जाता है, जैसे इसकी पहचान (identification), नामकरण (nomenclature), आकृति विज्ञान (morphology), आनुवंशिकी (genetics), जैव रसायन (biochemistry), पारिस्थितिक महत्व (ecological importance), इनसे होने वाली बीमारियाँ तथा अन्य जीवों के साथ अंतःक्रिया (interaction)। फंगस में यीस्ट (यीस्ट एककोशिकीय होते हैं), मोल्ड (ये बहुकोशिकीय होते हैं) और मशरूम शामिल है। फंजाई से पेनिसिलिन, स्ट्रेप्टोमाइसिन और टेट्रासाइक्लिन जैसी महत्वपूर्ण एंटीबायोटिक्स विकसित की जाती है, साथ ही इनसे कई बीमारियाँ भी होती है, इनका अध्ययन माइकोलॉजी में होता है।

Study of Fungus


3. फाइकोलॉजी (Phycology)

F. E. Fritsch को फाइकोलॉजी का फादर माना जाता है। फाइकोलॉजी में हम एलगी, उनके आवास (habitat), प्रकृति (nature), वर्गीकरण (taxonomy), आकृति विज्ञान (morphology), आनुवंशिकी (genetics), एल्गल ब्लूम (algal blooms) और पारिस्थितिक महत्व (economic importance) के बारे में अध्ययन करते हैं। एलगी एककोशिकीय (single cellular) और प्रकाश संश्लेषक (photosynthetic) होते हैं। ये जलीय पारिस्थितिकी तंत्र (aquatic ecosystem) के प्राथमिक उत्पादक हैं। 

4. पैरासिटोलॉजी (Parasitology)

पैरासिटोलॉजी के अंतर्गत पैरासाइट (परजीवी) का अध्ययन किया जाता है। फ़्रांसेस्को रेडी (Francesco Redi) को पैरासिटोलॉजी का फादर माना जाता है। पैरासाइट ऐसे जीव होते है जो अपनी आधारभूत आवश्यकताओं जैसे भोजन तथा आवास के लिए किसी अन्य जीवित जीव (होस्ट) पर निर्भर करते है। कुछ पैरासाइट होस्ट के शरीर के ऊपर पाए जाते है, जैसे - जू, खटमल आदि तथा कुछ शरीर के अंदर रहते है, जैसे - एस्केरिस (ये आंत के अंदर रहता है)। इसमें पैरासाइट तथा इसके होस्ट के बीच के इंटरेक्शन तथा इनके कारण होने वाली बीमारियों का अध्ययन किया जाता है।

5. इम्यूनोलॉजी (Immunology)

इम्यून सिस्टम के अध्ययन को इम्यूनोलॉजी कहा जाता है, तथा एडवर्ड जेनर (Edward Jenner) को इम्यूनोलॉजी का फादर कहा जाता है। क्योंकि जेनर पहले व्यक्ति थे, जिन्होंने पहली वैक्सीन (स्मॉलपॉक्स वैक्सीन) बनाई थी। माइक्रोबायोलॉजी की इस ब्रांच में इम्यून सिस्टम की शरीर को सुरक्षित रखने की कार्यप्रणाली के बारे में विस्तार से अध्ययन किया जाता है। यह एक महत्पूर्ण ब्रांच है क्योंकि इम्यून सिस्टम प्रत्येक जीव को एंटीजन अथवा पैथोजन्स के हमले से प्रतिरक्षा प्रदान करता है, अतः इसके सभी पहलुओं की जानकारी अत्यंत आवश्यक है। इसके अंतर्गत इम्युनिटी को प्रभावित करने वाले कारकों तथा कभी - कभी इम्यून सिस्टम के द्वारा होने वाली बीमारियों (ऑटोइम्यून डिजीज) का अध्ययन किया जाता है। वेक्सिनेशन इम्यूनोलॉजी की ही देन है, जिससे आज कई बीमारियों को पैदा होने से पहले ही रोक दिया जाता है। 

6. वायरोलॉजी (Virology)

मार्टिनस विलेम बेजरिनक (Martinus Willem Beijerinck) को वायरोलॉजी के फादर माना जाता है, इन्होंने ही पहली बार वायरस शब्द का प्रयोग किया था। इस ब्रांच के अंतर्गत वायरस के स्ट्रक्चर, वर्गीकरण, उसकी लाइफ - सायकल तथा इनसे होने वाली बीमारियों का अध्ययन किया जाता है।  वायरस एक इन्फेक्शस एजेंट है, जिसका आकर बहुत छोटा (लगभग 20 - 400nm डायमीटर) है। इन्हें जीवित तथा निर्जीव के बीच की कड़ी माना जाता है। ये मनुष्यों, जानवरों, बैक्टीरिया तथा पेड़ - पौधों में कई प्रकार की घातक बीमारियां पैदा करते है।


B) एप्लाइड माइक्रोबायोलॉजी 

एप्लाइड माइक्रोबायोलॉजी के अंतर्गत निम्नलिखित शाखाएं आती है -

1. इंडस्ट्रियल माइक्रोबायोलॉजी (Industrial Microbiology)

यह एप्लाइड माइक्रोबायोलॉजी की एक महत्वपूर्ण ब्रांच है। जिसके अंतर्गत ऐसे माइक्रोऑर्गनिज्म्स अध्ययन किया जाता है, जो इंडस्ट्रियल प्रोडक्ट्स जैसे - फर्मेन्टेड फ़ूड आइटम्स, बेवरेजेस, एमिनो एसिड्स, एंटीबायोटिक्स, एल्कोहल, विटामिन्स तथा वैक्सीन्स बनाने में उपयोग किये जाते है। 

लुइस पाश्चर (Louis Pasteur) को इंडस्ट्रियल माइक्रोबायोलॉजी का फादर कहा जाता है। इसमें इंडस्ट्री तथा इससे सम्बंधित माइक्रोऑर्गनिज्म्स का गहराई से अध्ययन किया जाता है। इंडस्ट्रियल महत्त्व के माइक्रोऑर्गनिज्म्स की स्ट्रेन को पहचानना तथा प्रोडक्शन यील्ड बढ़ाने के लिए स्ट्रेन इम्प्रूवमेंट करने के लिए नए - नए रिसर्च चलते रहते है। इंडस्ट्रियल माइक्रोबायोलॉजी बड़ी - बड़ी मेडिकल उपलब्धियों से लेकर दैनिक जीवन की खाने - पिने की चीजों तक व्यापक है।


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2. एग्रीकल्चर माइक्रोबायोलॉजी (Agricultural Microbiology)

माइक्रोबायोलॉजी की इस ब्रांच में पेड़ - पौधों तथा इनसे सम्बंधित माइक्रोऑर्गनिज्म्स का अध्य्यन किया जाता है। बहुत से माइक्रोऑर्गनिज्म्स ऐसे होते है, जो पौधों तथा फसलों की वृद्धि व पैदावार बढ़ाने के लिए मिट्टी में उपस्थित पोषक तत्वों को पौधों के लिए उपयुक्त रूप में बदलते है, जिन्हें जड़े आसानी से उपयोग कर लेती है। बहुत से माइक्रोऑर्गनिज्म्स अन्य हानिकारक जीवों से पौधों का बचाव करते है, साथ ही कुछ माइक्रोऑर्गनिज्म्स ऐसे होते है जो पौधों में कई प्रकार की बीमारियां उत्पन्न करते है। एग्रीकल्चर माइक्रोबायोलॉजी इन लाभदायक तथा हानिकारक दोनों प्रकार के माइक्रोऑर्गनिज्म्स का अध्ययन करती है, तथा पौधों को बीमारियों से बचाने के लिए यह आवश्यक है। 

माइक्रोऑर्गनिज्म्स की गहरी समझ तथा ज्ञान के कारण ऐसी बैक्टीरियल स्ट्रेंस की खोज की गई है, जिनसे कृषि के क्षेत्र को बहुत महत्पूर्ण लाभ प्राप्त हुए है। वर्तमान में माइक्रोऑर्गनिज्म्स से बने कई बायोफर्टिलाइजर तथा बायोइंसेक्टिसाइट है जिसने कृषि को उन्नत बनाया है। 

3. फूड माइक्रोबायोलॉजी (Food Microbiology)

लुइस पाश्चर (Louis Pasteur) को फूड माइक्रोबायोलॉजी का फादर कहा जाता है। यह ऐसे माइक्रोऑर्गनिज्म्स के अध्ययन को शामिल करती है, जो फूड के निर्माण तथा फूड को कंटामिनेट (दूषित) करने से सम्बंधित होते है। कई फूड प्रोडक्ट ऐसे है जो माइक्रोऑर्गनिज्म्स के बिना नहीं बनाये जा सकते है, जैसे फर्मेन्टेड फूड आइटम्स इनमें ब्रेड, दही, चीज, इडली, बियर, वाइन तथा कई अन्य बेकरी आइटम्स शामिल है। कई माइक्रोऑर्गनिज्म्स खाने की चीजों को कंटामिनेट (दूषित करना अथवा सडाना) करते है जैसे फलों पर फंगस का आना, दही पर यैलो, ग्रीन फंगस का आना तथा पेय पदार्थों का खट्टा हो जाना। अतः फूड माइक्रोबायोलॉजी के अंतर्गत फूड आइटम्स को बनाने में उपयोग होने वाले माइक्रोऑर्गनिज्म्स के अध्ययन के साथ - साथ फूड प्रिजर्वेशन (खाने को खराब होने से बचाना) की विभिन्न मेथडस का अध्ययन भी किया जाता है। कंटामिनटेड फूड कई प्रकार की बीमारिया पैदा करता है जिन्हें, फूड बोर्न डिजीज कहा जाता है।  

4. एक्वाटिक माइक्रोबायोलॉजी (Aquatic Microbiology)

पानी में रहने वाले माइक्रोऑर्गनिज्म्स के अध्ययन को एक्वाटिक माइक्रोबायोलॉजी कहा जाता है। इसमें माइक्रोऑर्गनिज्म्स की एक्टिविटी तथा अन्य जलीय जीवों से इनके सम्बंध का अध्ययन शामिल है। इनके जलीय आवास में नदियाँ, झीलें, समुद्र तथा अन्य जल स्त्रोत आते है, जलीय माइक्रोऑर्गनिज्म्स में बैक्टीरिया, एलगी, प्रोटोजोआ, फुंजाइ, वायरस तथा माइक्रोस्कोपिक प्लांट्स शामिल है। 

जलीय माइक्रोऑर्गनिज्म्स फूड चेन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते है तथा कई जलीय जीवों के लिए भोजन के स्त्रोत के रूप में उपलब्ध होते है। परन्तु इनमें से कई माइक्रोऑर्गनिज्म्स बीमारी पैदा करने वाले होते है, जो जल के माध्यम से जीव - जंतुओं के शरीर में पहुंच कर कई प्रकार की बीमारियां पैदा करते है, इन्हें वाटर बोर्न डिजीज कहा जाता है। अतः जलीय माइक्रोऑर्गनिज्म्स का अध्ययन अत्यंत आवश्यक है, जिससे जल में उपस्थित हानिकारक माइक्रोऑर्गनिज्म्स को पहचाना जा सके तथा कंटामिनेटेड जल से होने वाली बीमारियों को रोका जा सके।




Branches of Microbiology Aquatic Microbiology

5. एयर माइक्रोबायोलॉजी (Air Microbiology)

माइक्रोबायोलॉजी की इस ब्रांच को एरोमाइक्रोबायोलॉजी के नाम से भी जाना जाता है, इसके अंतर्गत वायु में उपस्थित विभिन्न प्रकार के माइक्रोऑर्गनिज्म्स का अध्ययन किया जाता है। इनमें बैक्टीरिया, वायरस, फंजाई, प्रोटोजोआ तथा अन्य शामिल है, इन माइक्रोऑर्गनिज्म्स को बायोएयरोसोल  (वायु में रहने वाले माइक्रोऑर्गनिज्म्स) कहा जाता है। ये माइक्रोऑर्गनिज्म्स विभिन्न स्त्रोतों से वायु में शामिल होते है जैसे - किसी कंटामिनटेड एरिया से, कंटामिनटेड व्यक्ति के खांसने या छींकने से, तथा सीवेज के माध्यम से। चूँकि ये वायु में उपस्थित होते है, इसके माध्यम से कही भी पहुंच जाते है तथा किसी भी व्यक्ति अथवा जंतु को कंटामिनेट कर सकते है। साँस लेने पर रेस्पिरेटरी ट्रैक्ट में पहुंच कर रेस्पिरेटरी डिजीज उत्पन्न कर सकते है। वायु के माध्यम से होने वाली बीमारियों को एयर बोर्न डिजीज कहते है। अतः एयर मॉनिटरिंग एयर बोर्न डिजीज को रोकने के लिए जरुरी है।   

6. डेयरी माइक्रोबायोलॉजी (Dairy Microbiology)

मिल्क तथा डेयरी प्रोडक्ट्स जैसे दही, पनीर, चीज तथा दुध से बने अन्य आइटम्स में उपस्थित माइक्रोऑर्गनिज्म्स के अध्ययन को डेयरी माइक्रोबायोलॉजी कहते है। कई डेयरी प्रोडक्ट्स बनाने के लिए माइक्रोऑर्गनिज्म्स जैसे यीस्ट व बैक्टीरिया आवश्यक होते है, परन्तु कभी -कभी इन आइटम्स में बीमारी पैदा करने वाले माइक्रोऑर्गनिज्म्स का कंटामिनेशन हो जाता है। इन कंटामिनेट आइटम्स को खाने से बीमारिया फैल सकती है। इसलिए डेयरी माइक्रोबायोलॉजी के अंतर्गत डेयरी प्रोडक्ट्स की गुणवत्ता का कई मेथड्स द्वारा विश्लेषण किया जाता है तथा प्रोडक्ट को कंटामिनेशन से बचाने अथवा माइक्रोऑर्गनिज्म्स रहित रखने के लिए इनकी गहराई से जाँच करते है। जिससे डेयरी प्रोडक्ट सुरक्षित रहे तथा उपभोक्ता के स्वास्थ्य को कोई नुकशान न हो।

7. मेडिकल माइक्रोबायोलॉजी (Medical Microbiology)

लुइस पाश्चर (Louis Pasteur) को मेडिकल माइक्रोबायोलॉजी का फादर कहा जाता है। इसके अंतर्गत बीमारी पैदा करने वाले माइक्रोऑर्गनिज्म्स जैसे बैक्टीरिया, वायरस, फंजाई तथा प्रोटोजोआ का अध्ययन किया जाता है। इसमें माइक्रोऑर्गनिज्म्स की लाइफ सायकल, इनके बीमारी पैदा करने के पैटर्न, बीमारी के डायग्नोसिस, ट्रीटमेंट तथा रोकथाम के बारे में रिसर्च होती है। बीमारी पैदा करने वाले माइक्रोऑर्गनिज्म्स की गहरी समझ से इनकी वृद्धि रोकने तथा बीमारी के उपचार के लिए बहुत महत्वपूर्ण जानकारियाँ मिलती है, जिसकी मदद से कई प्रकार की एंटीबायोटिक्स तथा वैक्सीन्स की खोज की गयी है। कई माइक्रोऑर्गनिज्म्स का उपयोग स्वास्थ को सुधारने के लिए किया जाता है, जैसे प्रोबायोटिक्स (ये जीवित माइक्रोऑर्गनिज्म्स है जो गट माइक्रोबायोटा बनाए रखने में मदद करता है।


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8. एनवायरमेंटल माइक्रोबायोलॉजी (Environmental Microbiology)

पर्यावरण में उपस्थित समस्त माइक्रोबियल समुदायों के अध्ययन को एनवायरमेंटल माइक्रोबायोलॉजी कहा जाता है। इसके द्वारा इनकी फिजियोलॉजी, कम्पोजिशन तथा वातावरण के अनुकूल खुद को बदलने की क्षमता की जानकारी मिलती है। माइक्रोऑर्गनिज्म्स पर्यावरण पर क्या प्रभाव डालते है, यह जानना हर पहलु से अत्यंत आवश्यक है। हमारे पर्यावरण में इतनी संख्या में माइक्रोऑर्गनिज्म्स उपस्थित है की सभी स्पीशीज को खोज पाना संभव नहीं है। यह गर्म रेगिस्तान से लेकर ठन्डे बर्फीले पहाड़ों तक हर स्थान पर मौजूद है। ये पर्यावरण को प्रत्यक्ष तथा अप्रत्यक्ष तरिके से कई लाभ पहुंचाते है, इनकी उपस्थिति से पर्यावरण सुचारु रूप से चलता है। अगर ये वातावरण से विलुप्त हो जाये, तो पृथ्वी पर मृत जीव - जंतुओं तथा पेड़ - पौधों का ढेर लग जायेगा क्योकि माइक्रोऑर्गनिज्म्स ही इन्हें डीग्रेड करते है तथा पर्यावरण को साफ रखते है।



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